गणेश चतुर्थी इस साल 10 सितंबर 2021 को है और उस दिन शुक्रवार है
श्री गणेश जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुआ था। इसीलिए हर साल इस दिन गणेश चतुर्थी धूमधाम से मनाई जाती है। ... गणेश चतुर्थी के दिन, भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। यह मान्यता है कि भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष के दौरान भगवान गणेश का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जाता है ।
हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले हमेशा श्रीगणेश की पूजा की जाती है। पंडित किसी भी काम का शुभारंभ करते वक्त सबसे पहले श्रीगणेशाय नम: लिखते हैं। गणेश जी को विघ्नहर्ता व ऋद्धि -सिद्धि का स्वामी कहा जाता है। इनके स्मरण, ध्यान, जप, आराधना से कामनाओ की पूर्ति होती है व विघ्नों का विनाश होता है। इसके अलावा यह रिवाज भी है कि सभी देवी-देवताओं से पहले श्री गणेश की पूजा की जाती है। यानी हर अच्छे काम की शुरूआत भगवान गणेश का नाम लेकर ही की जाती है। सबसे पहले गणपति की वंदना, पूजन-अर्जन करना जरूरी होती है। ऐसा क्यों करते है इसका जवाब बहुत कम ही लोग जानते हैं।
सभी देवताओं में सबसे पहले गणेश की ही पूजा क्यों की जाती है ?चलिए जानते हैं
प्रचलित कथा
एक प्रचलित कथा के मुताबिक, सभी देवताओं में एक बार इस बात को लेकर विवाद हुआ कि सबसे पहले किस भगवान की पूजा की जानी चाहिए। सभी देवताओं के अपने महत्व और कार्य हैं। सभी भगवानों के बीच चर्चा हुई और हर कोई खुद को सर्वश्रेष्ठ बताने लगे। तभी नारद मुनी प्रकट हुए और उन्होंने देवताओं को भगवान शिव के पास जाने के लिए कहा। सभी की बात सुनकर शिवजी ने कहा जो भी देवता इस पूरे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाकर सबसे पहले आएगा वही सर्वप्रथम पूजनीय माना जाएगा।
तभी सभी देवता अपने-अपने वाहनों पर सवार हो कर ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने निकल गए। गणेश जी ने भी इस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था। सभी देवी-देवता जब ब्रह्माण्ड के चक्कर लगा रहे थे तभी गणेश जी को एक तरकीब सूझी की मेरा वाहन तो चुआ है जो और देवों के वाहन से कभी नही जीत सकता तो गणेश जी ने सोचा में तो अपने माता-पिता के ही चक्कर लगाऊंगा मेरा ब्रमाण्ड तो ये ही है उन्होंने अपने माता-पिता के सात चक्कर लगा लिए। और उसके बाद सभी देवगण ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाकर जब तक भगवान शिव-पार्वती के पास पहुंचे, तब तक गणेश जी प्रतियोगिता जीत चुके थे। तब से भगवान गणेश जी को प्रथम पूजनीय देव माना जाता है
भगवान गणेश का जन्म
शिव पुराण के अनुसार भगवान गणेश के जन्म की एक कथा, इस कथा के अनुसार, माता पार्वती ने एकबार अपने शरीर पर मैल हटाने के लिए हल्दी लगाई थी। इसके बाद जब उन्होंने हल्दी उबटन उतारी तो उससे एक पुतला बना दिया और फिर उसमें प्राण डाल दिए। इस तरह भगवान गणपति का जन्म हुआ। तब माता पार्वती ने द्वार पर बैठने के लिए आदेश दिया कि कोई भी अंदर ना आ पाए। कुछ समय बाद भगवान शिव आए तो गणेशजी ने अंदर जाने नहीं दिया और विवाद शुरू हो गया। इससे शिवजी को क्रोध आ गया और विवाद ने युद्ध का रूप धारण कर लिया। युद्ध में शिवजी ने गणेशजी का सिर काट दिया। पार्वती जब बाहर आईं तो यह देवकर रोने लगीं। तब भगवान शिव ने गरूड़जी से कहा कि उत्तर दिशा की तरफ जाओ और जो भी मां अपने बच्चे की तरफ से पीठ करते सोई हो, उस बच्चे का सिर ले आना। तब गरूड़जी को हाथी के बच्चे का सिर दिखाई दिया और वह उसे ले जाकर शिवजी को दे दिया। शिवजी ने सिर को शरीर से जोड़ दिया और प्राण डाल दिए। इस तरह गणेश को हाथी का सिर लगा।
गणेश चतुर्थी का त्योहार हर साल बडे जश्न के साथ मनाया जाने वाला त्यौहार है ये त्योहार पूरे देश में बड़ी दूम-दाम से मनाया जाता है गणेश चतुर्थी इस साल 10 सितंबर 2021 को है और उस दिन शुक्रवार का दिन है गणेश चतुर्थी हिंदूओं का दस दिन तक चलने वाला त्यौहार है जिसमें वो अपने देवता गणेश के जन्म के तौर पर मनाते हैं। गणेश शंकर और पार्वती के बेटे हैं।
भगवान गणेश को 108 नामों से जाना जाता है। जो नीचे दिए गए हैं ।
1. विकट : अत्यंत विशाल
2. विनायक : सब के भगवान
3. विश्वमुख : ब्रह्मांड के गुरु
4. विश्वराजा : संसार के स्वामी
5. यज्ञकाय : सभी बलि को स्वीकार करने वाले
6. यशस्कर : प्रसिद्धि और भाग्य के स्वामी
7. यशस्विन : सबसे प्यारे और लोकप्रिय देव
8. सिद्धिप्रिय : इच्छापूर्ति वाले
9. स्कन्दपूर्वज : भगवान कार्तिकेय के भाई
10. सुमुख : शुभ मुख वाले
11. स्वरूप : सौंदर्य के प्रेमी
12. तरुण : जिनकी कोई आयु न हो
13. उद्दण्ड : शरारती
14. उमापुत्र : पार्वती के पुत्र
15. वरगणपति : अवसरों के स्वामी
16. वरप्रद : इच्छाओं और अवसरों के अनुदाता
17. योगाधिप : ध्यान के प्रभु
18. विघ्नेश्वर : बाधाओं के हरने वाले भगवान
19. श्वेता : जो सफेद रंग के रूप में शुद्ध हैं
20. वरदविनायक: सफलता के स्वामी
21. वीरगणपति : वीर प्रभु
22. शुभगुणकानन : जो सभी गुणों के गुरु हैं
23. विद्यावारिधि : बुद्धि के देव
24. विघ्नहर : बाधाओं को दूर करने वाले
25. विघ्नहत्र्ता: विघ्न हरने वाले
26. विघ्नविनाशन : बाधाओं का अंत करने वाले
27. विघ्नराज : सभी बाधाओं के मालिक
28. विघ्नराजेन्द्र : सभी बाधाओं के भगवान
29. विघ्नविनाशाय : बाधाओं का नाश करने वाले
30. गदाधर : जिनका हथियार गदा है
31. गणाध्यक्षिण : सभी पिंडों के नेता
32. गुणिन: सभी गुणों के ज्ञानी
33. हरिद्र : स्वर्ण के रंग वाले
34. हेरम्ब : मां का प्रिय पुत्र
35. कपिल : पीले भूरे रंग वाले
36. कवीश : कवियों के स्वामी
37. कीर्ति : यश के स्वामी
38. कृपाकर : कृपा करने वाले
39. कृष्णपिंगाश : पीली भूरी आंख वाले
40. क्षेमंकरी : माफी प्रदान करने वाला
41. क्षिप्रा : आराधना के योग्य
42. मनोमय : दिल जीतने वाले
43. मृत्युंजय : मौत को हराने वाले
44. मूढ़ाकरम : जिनमें खुशी का वास होता है
45. मुक्तिदायी : शाश्वत आनंद के दाता
46. नादप्रतिष्ठित : जिन्हें संगीत से प्यार हो
47. नमस्थेतु : सभी बुराइयों पर विजय प्राप्त करने वाले
48. नन्दन: भगवान शिव के पुत्र
49. सिद्धांथ: सफलता और उपलब्धियों के गुरु
50. पीताम्बर : पीले वस्त्र धारण करने वाले
51. प्रमोद : आनंद
52. पुरुष : अद्भुत व्यक्तित्व
53. रक्त : लाल रंग के शरीर वाले
54. रुद्रप्रिय : भगवान शिव के चहेते
55. सर्वदेवात्मन : सभी स्वर्गीय प्रसाद के स्वीकर्ता
56. सर्वसिद्धांत : कौशल और बुद्धि के दाता
57. सर्वात्मन : ब्रह्मांड की रक्षा करने वाले
58. ओमकार : ओम के आकार वाले
59. शशिवर्णम : जिनका रंग चंद्रमा को भाता हो
60. अलम्पता : अनन्त देव।
61. अमित : अतुलनीय प्रभु
62. अनन्तचिदरुपम : अनंत और व्यक्ति चेतना वाले
63. अवनीश : पूरे विश्व के प्रभु
64. अविघ्न : बाधाएं हरने वाले।
65. भीम : विशाल
66. भूपति : धरती के मालिक
67. भुवनपति: देवों के देव।
68. बुद्धिप्रिय : ज्ञान के दाता
69. बुद्धिविधाता : बुद्धि के मालिक
70. चतुर्भुज: चार भुजाओं वाले
71. देवादेव : सभी भगवान में सर्वोपरि
72. देवांतकनाशकारी: बुराइयों और असुरों के विनाशक
73. देवव्रत : सबकी तपस्या स्वीकार करने वाले
74. देवेन्द्राशिक : सभी देवताओं की रक्षा करने वाले
75. धार्मिक : दान देने वाले
76. दूर्जा : अपराजित देव
77. द्वैमातुर : दो माताओं वाले
78. एकदंष्ट्र: एक दांत वाले
79. ईशानपुत्र : भगवान शिव के बेटे
80. गजवक्त्र: हाथी की तरह मुंह है
81. गणाध्यक्ष : सभी जनों के मालिक
82. गणपति : सभी गणों के मालिक
83. गौरीसुत : माता गौरी के बेटे
84. लम्बकर्ण : बड़े कान वाले देव
85. लम्बोदर : बड़े पेट वाले
86. महाबल : अत्यधिक बलशाली
87. महागणपति : देवादिदेव
88. महेश्वर: सारे ब्रह्मांड के भगवान
89. मंगलमूर्ति : सभी शुभ कार्यों के देव
90. मूषकवाहन : जिनका सारथी मूषक है
91. निदीश्वरम : धन और निधि के दाता
92. प्रथमेश्वर : सब के बीच प्रथम आने वाले
93. शूपकर्ण : बड़े कान वाले देव
94. शुभम : सभी शुभ कार्यों के प्रभु
95. सिद्धिदाता: इच्छाओं और अवसरों के स्वामी
96. सिद्दिविनायक : सफलता के स्वामी
97. सुरेश्वरम : देवों के देव।
98. वक्रतुण्ड : घुमावदार सूंड वाले
99. अखूरथ : जिसका सारथी मूषक है
100. बालगणपति : सबसे प्रिय बालक
101. गजवक्र : हाथी की सूंड वाले
102. भालचन्द्र : जिसके मस्तक पर चंद्रमा हो
103. बुद्धिनाथ : बुद्धि के भगवान
104. धूम्रवर्ण : धुंए को उड़ाने वाले
105. एकाक्षर : एकल अक्षर
106. एकदन्त: एक दांत वाले
107. गजकर्ण : हाथी की तरह आंखों वाले
108. गजानन: हाथी के मुख वाले भगवान
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