राजस्थान के मीणा क्षत्रिय राजाओ का प्रारंभिक इतिहास*।
पौराणिक काल,रामायण महाभारत काल से इस धरा पर *मुलनिवासी मीणा क्षत्रियों* का 12सदी तक एकक्षत्र राज रहा था।
मीणा राजा प्रकृति पूजक के साथ शिव और शक्ति के उपासक रहे थे।
आज भी मीणा राजाओं द्वारा निर्मित आमेर जयपुर के आस पास क्षेत्रों सहित संपूर्ण राजस्थान में 1500-2000साल पुराने शिव मंदिर आज भी मौजूद हैं।
प्राचीन काल में यह क्षेत्र*मत्स्य प्रदेश कहलाता था*।
यानि मीन वंश, मीणा क्षत्रियों का देश।
सोचो कहां गया मीणाओं का हजारों साल का गौरवशाली इतिहास।
10वीं सदी में यहां आयें बाहरी आक्रमणकारियों ने भोले भाले मीणा आदिवासी राजाओं को धोखे से मारकर चितौड़,आमेर,अलवर,दौसा,करौली,रणथंम्भोर,कोटा-बुंदी,अजमेर,मारवाड़,डूंगरपुर,बांसवाडा़,कुंभलगढ़ सहित आज के *समस्त राजस्थान,मत्स्य प्रदेस पर कब्ज़ा करके पुरर्वती मीणा शासकों, राजाओं की बेशकीमती ऐतिहासिक निशानियां मिटा दी गई या अपने नाम कर ली गई*।
मीणाओ का निवास स्थान
मीणा मुख्यतया भारत के राजस्थान राज्य में निवास करने वाली एक जाति]] है। मीणा जाति भारतवर्ष की प्राचीनतम जातियों में से मानी जाती है । वेद पुराणों के अनुसार मीणा जाति मत्स्य(मीन) भगवान की वंशज है। पुराणों के अनुसार चैत्र शुक्ला तृतीया को कृतमाला नदी के जल से मत्स्य भगवान प्रकट हुए थे। इस दिन को मीणा समाज जहां एक ओर मत्स्य जयन्ती के रूप में मनाया जाता है वहीं दूसरी ओर इसी दिन संम्पूर्ण राजस्थान में गणगौर कात्योहार बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। मीणा जाति का गणचिह्न मीन (मछली) था। मछली को संस्कृत में मत्स्य कहा जाता है। प्राचीनकाल में मीणा जाति के राजाओं के हाथ में वज्र तथा ध्वजाओं में मत्स्य का चिह्न अंकित होता था, इसी कारण से प्राचीनकाल में मीणा जाति को मत्स्य माना गया। प्राचीन ग्रंथों में मत्स्य जनपद का स्पष्ट उल्लेख है जिसकी राजधानी विराट नगर थी,जो अब जयपुर वैराठ है। इस मस्त्य जनपद में अलवर,भरतपुर एवं जयपुर के आस-पास का क्षेत्र शामिल था। आज भी मीणा लोग इसी क्षेत्र में अधिक संख्या में रहते हैं। मीणा जाति के भाटों(जागा) के अनुसार मीणा जाति में 12 पाल,32 तड़ एवं 5248 गौत्र हैं।मध्य प्रदेश के भी लगभग 23 जिलो मे मीणा समाज निबास करता है ।
मीणा जाति मुख्य रूप से निम्न लिखित वर्गों में बंटी गई है ।
1. जमींदार या पुरानावासी मीणा : जमींदार या पुरानावासी मीणा वे हैं जो प्रायः खेती एवं पशुपालन का कार्य बर्षों से करते आ रहे हैं। ये लोग राजस्थान के सवाईमाधोपुर,करौली,दौसा व जयपुर जिले में सर्वाधिक हैं|
2. चौकीदार या नयाबासी मीणा : चौकीदार या नयाबासी मीणा वे मीणा हैं जो अपनी स्वछंद प्रकृति के कारण चौकीदारी का कार्य करते थे। इनके पास जमींने नहीं थीं, इस कारण जहां इच्छा हुई वहीं बस गए। उक्त कारणों से इन्हें नयाबासी भी कहा जाता है। ये लोग सीकर, झुंझुनू, एवं जयपुर जिले में सर्वाधिक संख्या में हैं।
3. प्रतिहार या पडिहार मीणा : इस वर्ग के मीणा टोंक, भीलवाड़ा, तथा बूंदी जिले में बहुतायत में पाये जाते हैं। प्रतिहार का शाब्दिक अर्थ उलट का प्रहार करना होता है। ये लोग छापामार युद्ध कौशल में चतुर थे इसलिये प्रतिहार कहलाये।
4. भील मीणा : ये लोग सिरोही, उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर एवं चित्तोड़गढ़ जिले में प्रमुख रूप से निवास करते हैं।
5. रावत मीणा : रावत मीणा अजमेर, मारवाड़ में निवास करते हैं।
मध्ययुगीन मीणा इतिहास
प्राचहिन समय मे मीणा राजा आलन सिंह ने,एक असहाय राजपूत माँ और उसके बच्चे को उसके दायरे में शरण दि। बाद में, मीणा राजा ने बच्चे, ढोलाराय को दिल्ली भेजा,मीणा राज्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए। राजपूत ने इस्एहसान के लिए आभार मे राजपूत सड़यन्त्रकारिओ के साथ आया और दीपावली पर निहत्थे मीनाओ कि लाशे बिछा दि,जब वे पित्र तर्पन रस्में कर रहे थे।मीनाओ को उस् समय निहत्था होना होता था। जलाशयों को"जो मीनाऔ के मृत शरीर के साथ भर गये। और इस प्रकार कछवाहा राजपूतों ने खोगओन्ग पर विजय प्राप्त की थी,सबसे कायर हर्कत और राजस्थान के इतिहास में शर्मनाक।
एम्बर के कछवाहा राजपूत शासक भारमल हमेशा नह्न मीना राज्य पर हमला करता था, लेकिन बहादुर बड़ा मीणा के खिलाफ सफल नहीं हो सका। अकबर ने राव बड़ा मीना को कहा था,अपनी बेटी कि शादी उससे करने के लिए। बाद में भारमल ने अपनी बेटी जोधा की शादी अकबर से कर दि। तब अकबर और भारमल की संयुक्त सेना ने बड़ा हमला किया और मीना राज्य को नस्त कर दिया। मीनाओ का खजाना अकबर और भारमल के बीच साझा किया गया था। भारमल ने एम्बर के पास जयगढ़ किले में खजाना रखा ।
जितेन्द्रसिंह शेखावत के अनुसार ‘न्याहण के मीणा कछवाहों के लिए बड़ी चुनौती बने हुए थे. भारमल ने अकबर से अपनी पुत्री का विवाह करके अपनी स्थिति मजबूत कर ली. इस विवाह के विरोध में भारमल की हाड़ी रानी ने ज़हर पी लिया लेकिन तुरंत उपचार मिलने से वह बच गयी.’ सोलहवीं सदी में न्याहण पर गोमलाडू वंश के मीणा राजाओं का शासन था. ढूंढाड़ इलाके में यह ऐतिहासिक कहावत प्रचलित है; ‘बावन कोट छप्पन दरवाज़ा / मीणा मरद न्याहण का राजा.’ ग्यारहवीं-बारहवीं सदियों में कछवाहों ने मीणा राज्य ढूंढाड़, खोहगंग व माची को विजित करने के क्रम में ही न्याहण को भी मीणों के हाथों से छीन लिया था. और फिर मीणा विद्रोही बन गये थे ।
तूंगा (बस्सी) के पास जयपुर नरेश प्रतापसिंह और माधजी सिन्धिया मराठा के बीच 1787 मे जो स्मरणिय युध्द हुआ उसमें प्रमुख भूमिका मीणो की रही जिसमे मराठे इतिहास मे पहली बार जयपुर के राजाओ से प्राजित हुए थे वो भी मीणाओ के कारण इस युध्द में राव चतुर और पेमाजी की वीरता प्रशंसनीय रही । उन्होने चार हजार मराठो को परास्त कर मीणाओ ने अपना नाम अमर कर दिया । तूँगा के पास अजित खेड़ा पर जयराम का बास के वीरो ने मराठो को हराया इसके बदले में मीणाओ को जयराम का बास की जमीन व जयपुर खजाने मे पद दिया गया ।
उमर गांव के लोगो ने प्रथम व द्वीतिय विश्व युध्द लड़कर शहीदहुए थे शिवगंज के नाथा व राजा राम मीणा को उनकी वीरता पर उस समय का परमवीर चक्र जिसे विक्टोरिया चक्र कहते थे मिला था जो उनके वंशजो के पास है । देश आजाद हुआ तब तीन मीणा बटालियने थी पर दूर्भावनावश खत्म कर दी गई थी
मीणा जाति के प्रमुख राज्य निम्नलिखित थे
1. खोहगंग का चांदा राजवंश
2. मांच का सीहरा राजवंश
3. नाढ़ला का राजवंश
4. नहाण का गोमलाडू राजवंश
5. रणथम्भौर का टाटू राजवंश
6. गैटोर तथा झोटवाड़ा के नाढला राजवंश
7.आमेर का सूसावत राजवंश
8. नायला का राव बखो [beeko] देवड़वाल [द॓रवाल] राजवंश
9 बूंदी का ऊसारा राजवंश
10. मेवाड़ का मीणा राजवंश
11. झान्कड़ी अंगारी (थानागाजी) का सौगन मीना राजवंश
मीणा राजाओं द्वारा निर्मित प्रमुख मंदिर :
1. मीन भगवान का मंदिर, खुर्रा,लालसोट, दौसा (राजस्थान)
2. मीन भगवान का मंदिर, मलारना चौड़,सवाई माधोपुर (राजस्थान)
3.मीन भग्वान मन्दिर्,बस्सि,जयपुर्
4. दांतमाता का मंदिर, जमवारामगढ़- सीहरा मीणाओं की कुल देवी
5. मीन भगवान का भव्य मंदिर, चौथ का बरवाड़ा,सवाई माधोपुर (राजस्थान)
6. बांकी माता का मंदिर,टोडा का महादेव,सेवड माता -ब्याडवाल मीणाओं का
7. शिव का मंदिर, नई का नाथ, बंसखोह
* नई का नाथ, मंदिर ।
बस्सी के आगे आगरा रोड पर जहाँ बांसखो रेल्वे स्टेशन से बायीं तरफ अरावली की सुरम्य पहाड़ियों में मीणों का आस्था-केंद्र ‘नई का नाथ’ महादेव जी का मंदिर अवस्थित है. मीणा राज्य न्याहण की राजधानी पहले यहीं हुआ करती थी. मंदिर के नाथ संप्रदायी पुजारियों ने बताया कि यहाँ के न्याहण वंश के राजा ने हाड़ौती (आज का कोटा क्षेत्र) के हाड़ा राजा की पुत्री से विवाह किया था. वह रानी जंगल में स्थित इस मंदिर में रोज पूजा करने आया करती थी. उसी के नाम पर इसका नाम नई का नाथ पड़ा.।
मीणा समाज से जुड़े कुछ गोत्रों और कुलदेवि
1.
चाँद गोत्र (Chand Gotra)
चाँदामाता
2.
बैपलावत (Beplawat)
पाली माता
3.
टाटू (Tatu) बड़वासन माता
जगरवाल (Jagarwal)
अहराई माता
4.
महेर (Maher)
घटवासन माता, घाटारानी
5.
चांदा (Chanda) बाण माता , बुडवाय / गुडवाय
6.
मानतवाल / माणजवाल (Manatwal / Manajwal), महर (Mahar)
जीण माता
7.
बारवाल / बारवाड़ (Barwal / Barwad)
चौथ माता
8.
मरमट (Marmat)
दुगाय माता / दुर्गा माता / ज्वालामाता
9.
जोरवाल (Jorwal/Jarwal)
ब्रह्माणी माता
10.
बेडवाल (Bedwal) / व्यानडवाल (Vyanadwal)
बांकी माता
11.
नायी मीणा, ककरोडा कुकल्डा (Nayi Meena, Kakroda Kukalda)
नारायणी माता
12.
सुसावत (Susawat)
अम्बा माता- आम्बेर
13.
बैनाडा (Benada), गोहली / गोल्ली (Gohli)
आशाजाई माता : चामुण्डा माता
14.
खोडा (Khoda)
सेवाद माता
15.
उषारा (Ushara)
बीजासण माता
16.
चन्नावत (Chanawat ), गगरवाल (Gagarwal)
कैला माता
17.
जेफ (Jef)
वधासन माता
18.
सहेर, सहरिया (Saher, Sahariya)
गुमानी माता
19.
डाडरवाल (Dadarwal), मांदड (Mandad)
खुरी / खुर्रा माता
20.
डोबवाल (Dobwal) /डींभवाल (Dinbhwal)
खलकाई माता
21.
कटारा (Katara)
धराल माता
22.
चरणावत (Charnawat), पारगी (Pargi),
नटरावत (Natrawat), टोरा मंदलावत (Tora Mandlawat)
काली माता
23.
हरमोर (Harmor )
जावर माता
24.
घुणावत (Ghunawat)
लहकोह माता / लहकोड माता
25.
मेवाल (Mewal)
मैणसी /असावरी / बाण / आवरी माता
26.
कोटवाल्या / कोटवाल (Kotwalia / Kotwal)
मोरा माता
27.
सिहरा (Sihra)
दांत माता, सप्तमातृका
28.
मांडल / मंडिया (Mandal / Mandiya)
जोगनिया माता
29.
जारेडा, जन्हाडा (Jareda, Janhada)
बीरताई माता
30.
छाँडवाल (Chhandwal)
पपलाज माता
31.
काकस (Kakas), गोहली (Gohli)
चामुंडा माता
32.
कंजोलिया (Kanjolia), करेलवाल (Karelwal)
ईंट माता
33.
आदि मीणा (Adi Meena)
गोंदला माता
34.
मोटिस (Motis)
टाड माता
35.
ध्यावणा (Dhyavana)
ध्यावण माता
36.
गोठवाल (Gothwal), बरवाल (Barwal)
बनजारी माता
37.
नैमिणा (Naimina)
पंच माता, दूधाखेड़ी पंच माता
38.
जहेला (Jahela), इलीचा (Ilicha)
मनसा माता
39.
गोमलाडू (Gomladu)
सन्त्या माता
40.
मेगल (Megal)
सावली माता
41.
आदिवासी मीणा (Aadivasi Meena)
सीतामाता
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